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प्रबंधक का संदेश

शिक्षा ज्ञानार्जन की एक विद्या है। जिसके द्वारा शिक्षक बालक के अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करते हुये एक सुसंस्कारित, चरित्रवान, स्वालम्बी, संवेदनशील, राष्ट्र के प्रति समर्पित नागरिक बनाने का प्रयास करता है। यदि उसका प्रयास सफल हुआ तो वही बालक आगे चलकर एक वट वृक्ष के रूप मे दिखाई देता है। अब प्रश्न उठता है कि बालक/बालिका के अंदर इन गुणो को कैसे निरूपित किया जाए? जिसके लिए आवश्यक है कि शिक्षक को प्रशिक्षित होना चाहिए। वास्तव मे शिक्षा को दूसरे तक पहुँचाने की कला को प्रशिक्षण कहते हैं। इन्ही उद्देश्य की पूर्ति हेतु महाविद्यालय मे पूर्व माध्यमिक स्तर तक अधध्यन करने वाले बालक बालिकाओं को शिक्षित करने हेतु एक योग्य शिक्षक तैयार करने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गयी है। जो एन०सी०टी०ई० से मान्यता तथा राज्य सरकार से संबद्धता प्राप्त है।

साथियों! मेरा प्रयास रहा है कि इस रोहिन तथा राप्ती के कछार मे एक शिक्षा का हब तैयार किया जाये। जहाँ से एक ही छत के नीचे बालक/बालिका अपने रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण कर सकें। इस हेतु प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा प्रदान करने व्यवस्था की गई जिसके अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय (मानविकी तथा वैज्ञानिक वर्ग) स्नातक स्तर पर कला संकाय के अन्तर्गत (हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल, गृह विज्ञान, राजनीति शास्त्र, समाज शास्त्र, शिक्षा शास्त्र, अर्थशास्त्र) बी०एड० अनुभाग, बी०टी०सी० अनुभाग तथा प्रावैधिक शिक्षा के अन्तर्गत आइ०टी०आइ० (फिटर, इलेक्ट्रिशियन, कम्प्युटर एप्लिकेशन (कोपा), कटिंग, टेलरिंग, स्टेनोग्राफी हिन्दी) जैसे पाठ्यक्रम संचालित एवं सम्बंधित विभागों/शासन से मान्यता प्राप्त है। अभी बहुत कुछ करना शेष है जिसके लिए मेरा प्रयास जारी है।

महाविद्यालय के अन्दर आने वाले बालक/बालिकाओं के अन्दर मानवीय गुणो को विकसित करने के लिए योग्य एवं कुशल शिक्षकों की नियुक्ति की गयी है। जो उन्हे अच्छी शिक्षा प्रदान करते हैं। छात्र/छात्राओ से अपील करता हूँ कि विद्यालय मे नियमित उपस्थित होकर अपने पाठ्यक्रम को पूरा करें। अभिभावकों से भी निवेदन है कि अपने पाल्य को विद्यालय/महाविद्यालय में प्रतिदिन उपस्थित होने के लिए ध्यान रखे।

आपके सहयोग एवं सुझाव का आकांक्षी हूँ।

त्रिलोकी नाथ त्रिपाठी

प्रबन्धक